अश्वगंधा (Ashwagandha) एक बहुत प्रसिद्ध औषधीय वनस्पति है । यह बहुत ही गुणकारी औषधि है। इसके सेवन से बहुत से रोगों में फायदा होता है। ये देश के ज़्यादातर हिस्सों में पैदा होती है, लेकिन इसकी मुख्य खेती राजस्थान व मध्य प्रदेश में अधिक होती है। ये मूलतः दो प्रकार की होती है, एक जंगली व दूसरी खेती की हुई। इसका पौधा कई वर्षों तक जीवित रहता है।लेकिन इसकी जो खेती है वो केवल 6 महीने के लिए की जाती है। इसके बाद इसे दुबार लगाना पड़ता है। अगर आपको अश्वगन्धा खाने के लिए लेना है तो खेती किया हुआ अच्छा होता और यदि लैप या तैल आदि के लिए चाहिए तो फिर जंगली बेहतर रहता है क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर होता है।
असगंध का नाम अश्व और गंध से लिया गया है। अश्वगंधा की जड़ और पत्तों से घोड़े के मूत्र एवं पसीने जैसी दुर्गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा रखा गया है। आयुर्वेदिक शोधकर्ताओं का मानना है कि अश्वगंधा के सेवन से अश्व (घोड़े) जैसी ताकत और यौन शक्ति मिलती है।
अश्वगन्धा एक शक्तिवर्धक औषधीय पौधा है। इसके पौधे का प्रत्येक हिस्सा काम में आता है। जैसे फूल, टहनी, तना व जड़ आदि। विभिन्न रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। इसे भारत ही नही बल्कि दुनिया भर की कंपनियां खरीदती हैं। अश्वगन्धा से ज़्यादातर ताकत की दवाएं बनती हैं।
अश्वगंधा (Ashwagandha) के नाम:
आयुर्वेदाचार्यों ने इस पौधे का नाम अश्वगंधा पड़ने के पीछे एक कारण तो इसकी जड़ो और पत्तियों से घोड़े यानी अश्व के मूत्र के समान समान आने वाली गंध है तथा दूसरा कारण इसके सेवन से घोड़े जैसी प्राप्त होने वाली शक्ति को बताया है।
अश्वगन्धा को अन्य कई और नामों से भी जाना जाता है। जो क्षेत्र और भाषा के आधार पर होते हैं। हिंदी में इसे असगन्ध कहते हैं। इसके नाम के अनुसार ही इसके गुण हैं। अश्वगन्धा का उपयोग मुख्यतः औषधि के रूप में होता है। संस्कृत में वाराहकर्णी, बलदा, अस्वरोहक, पुष्टिदा, वाजिकारी, पलाशपर्णी आदि । हिंदी में असगन्द, नागोरी असगन्द, असगन्धि, घोड़ा असगन्धी। गुजराती व मराठी में आसन्ध, तेलगू में पिनिरु, तमिल में आमुकलांग, बंगला में अश्वगन्धा नाम प्रचलित हैं। इसका यूनानी नाम काकनज हिंदी है तथा अंग्रेजी में विन्टरचेरी है। इसकी जड़ में क्षारीय तत्व (Alkaloid) पाया जाता है, जिसे सोमनिफेरीन (Somniferin) कहते हैं। इसके अलावा इसमें विथेनियांल (Withaniol) और फाइटोस्टेरॉल (Phytosteral) नामक तत्व भी पाया जाता है। जिससे इसको लैटिन में विदानिया सोमनिफेरा (Whithania Somnifera) कहते हैं। इसकी जड़ में स्टार्च के अलावा एक उड़नशील तेल भी होता है।
अश्वगंधा के गुण:
अश्वगंधा (Ashwagandha) एक ऐसी औषधि है जिसका प्रयोग हम अपने शरीर को विभिन्नन रोगों से बचाने के लिए कर सकते हैं। इसके द्वारा हम अपनी शरीर की कायाकल्प भी कर सकते हैं। क्योंकि अश्वगन्धा को रसायन गुणवाली औषधि माना गया है। औषधीय रूप में ज़्यादातर इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है। इसका स्वाद कड़वा होता है। इसका वर्णन लगभग सभी प्रमुख आचार्यों ने अपने लेखों में किया है। ये काफी हल्की, अत्यन्त वीर्यवर्द्धक, शरीर में रोनक और कांति लाने वाली औषधि है। ये तीनो दोष वात ,कफ व पित्त को सन्तुलित करती है। सूजन, क्षय, खांसी, घाव, कुष्ट, पेट के कीड़े, और साँस सम्बन्धी रोगों को दुर करती है। ये बीमारी के बाद कि दुर्बलता को दूर करती है। स्त्री के स्तनों में दुग्ध ग्रन्थों को सक्रिय करती है और दूध का उत्पादन बढ़ाती है। जैसा कि इसका नाम है, इस औषधि के लगातार सेवन से कमज़ोर भी अश्व के समान शक्तिशाली हो जाता है।
अश्वगंधा पर वैज्ञानिक शोध:
कुछ सोधो के अनुसार अश्वगन्धा का चूर्ण आयुवर्धक है। एक शोध में 50 से 60 वर्ष के कुछ व्यक्तियों को 1-1 ग्राम चूर्ण दिन में 3 बार दूध के साथ एक वर्ष तक दी गई। इस शोध से पता चला कि जिन व्यक्तियों को ये औषधि दी गई थी, उनमें हीमोग्लोबिन, लाल रक्तकणों की मात्रा बढ़ी तथा उनके बाल भी काले हो गए, जिन वृद्धों की कमर झुकी हुई थी वो भी काफी हद तक सही तरह से खड़े होने लगे। उनकी हड्डियों में लचीलापन बढ़ गया । उनमें सीरम कोलेस्ट्रोल घटा तथा रक्तकणों के बैठने की गति (ESR) भी कम हई। कुछ शोधों में ये भी पता चला कि इसके सेवन से शरीर का मांस -मैद बढ़ता है। ये एक सप्तधातु पोषक रसायन है। इसके जड़ों व पत्तियों में जीवाणु नाशक (एन्टीबायोटिक) एवं बैक्टीरिया रोधी गुण होते हैं।
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“अश्वगन्धा के औषधीय प्रयोग और लाभ (Benefits of Ashwagandha and Usage)”